आवत ही हरषै नहीं

आवत ही हरषै नहीं   
    
आवत ही हरषै नहीं, नैनन नहीं सनेह।
तुलसी तहां न जाइये, कंचन बरसे मेह।।
              तुलसी दास
जिस जगह हमारे जाने पर किसी को प्रसन्नता न हो
जिनके नेत्रों में कोई स्नेह का भाव न हो तुलसी कहते हैं ऐसे स्थान पर न जाना ही श्रेयस्कर है चाहे वहां कितना भी ऐश्वर्य क्यों न हो चाहे सोने की बरसात ही क्युं न हो हमें तो ऐसे स्थान पर जाना  चाहिए जहां सोने रुपी नहीं अपितु स्नेह रुपी बरसात हो

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